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राजा और शतरंज


राजा की गर्दन में जब
शतरंज गड़ जाती है

वह झुका नहीं सकता
अपनी गर्दन तब
न घुमा सकता है,
सिर्फ देख सकता है सामने

वह बिसात पर खड़ा
मोहरों से डरता है
हर नागरिक को मोहरा समझता है

हरबार मंत्री को आगे करता है
सेनापति की आड लेता है
घोड़े, हाथी, पियादों के पीछे छिप कर रहता हे

राजा जब इस डर से घिर जाता है
कि वह बिसात पर हे
तब बह राजा नहीं रह जाता

जब एक राजा
राजा नहीं रह जाता
तब वह भी शतरंज का एक मोहरा होता है मात्र
जिसे कोई दृश्य/अदृश्य हाथ
सिर से पकड़ता है

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 111