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मैं अपने सांसद का चेहरा भूल जाता हु
अपने ही विधायक का नाम याद नहीं रहता
पत्नी कहती है ये भी कोई भूलने वाले नाम हैं?
और में उसी से पूछता हूं कि तुम ही बता दो
वह माथे पर उंगलियां फिराती है
कहती है मरजाने नजर भी तो नहीं आते कि याद रहें

मैं आश्वस्त होता हूं कि
अधिकतर लोगों की याददाश्त मेरे ही जैसी हे
उम्र का तकाजा नहीं है
निजाम में कुछ चेहरों की औकात से बडे होते हैं पद
मुझे राजनीतिक मित्र की बात ही
अंतिम सत्य जान पड़ती है

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मैं आश्वस्त होता हूं
तो राजनीतिक मित्र नया शिगूफा छेड़ देता है
कहता है
इस मुल्क में हर नागरिक की
भूल जाने की आदत कमाल है
हिंसा, कत्लोगारत, खून खराबा तक भूल जाती है
लूट, चोट, खोट कुछ याद नहीं रखती के
लुटेरे, हत्यारे, नकारे बार-बार जीत जाते है
और जनता
अपनी भूल जाने की मस्ती में मस्त रहती है
लुटती नुचती पिटती रहती है

 

वीरेंदर भाटिया : चयनित कविताएँ 105