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इंच के १२५ वे भाग के बराबर ) होता है। एकघटक अणुजीवों के समान इसकी वृद्धि भी विभाग द्वारा उत्तरोत्तर होती है। कुछ काल तक तो सब घटक एक गुच्छे के रूप में होते है, फिर सब बाहरी सतह पर आकर एक झिल्ली के रूप में मिल जाते हैं और भीतर खाली जगह पड़ जाती हैं। इस प्रकार एक झिल्ली का खोखला गोला सा बन जाता है। थोड़े ही दिनों में इस गोले की झिल्ली एक ओर से पचक कर धँसने लगती है जिससे दोहरी झिल्ली का एक कटोरा सा बन जाता है। इसको "द्विकल घट" कहते है जिससे क्रमश: सब अंगो और अवयवो का विधान होता है। बाहरी कला या झिल्ली से ऊपरी त्वक की और संवेदनसूत्रों से संघटित मनोविज्ञानमय कोश की रचना होती है और भीतरी झिल्ली से अत्रावाले आदि का प्रादुर्भाव होता है। द्विकलघट के भीतर के खाली स्थान को पेट का आदिम रूप समझना चाहिए और उसके सादे छिद्र को मुँह का। हैकल ने सूचित किया कि यही द्विकलघट सब बहुघटक प्राणियो को आदिम रूप है। इसी से विकाश परम्परानुसार सब बहुघटक प्राणियो की उत्पात्त हुई है। उन्होंने स्पंज आदि अब तक पाए जानेवाले द्विकलात्मक सादे जीवो की ओर ध्यान दिला कर अपने कथन की पुष्टि की।

इस पृथ्वी पर सादे द्विकलघट जीवो से क्रमशः एक दूसरे के उपरांत जिन जिन ढाँचो के जीव मनुष्य तक आनेवाली उत्पत्ति परंपरा मे उत्पन्न हुए है उन ढॉचो को गर्भ के भीतर गर्भपिड उत्तरोत्तर प्राप्त करता हुआ मनुष्य के रूप मे