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रोईदार लंबे डिभकीट के रूप में हो जाता है जिसमे सिर की ठोठ और दो नेत्रविदुओं के अतिरिक्त कोई और भीतरी अवयव नहीं होता। यदि यह जल में पहुँचा तो कुछ काल तक तैरता फिरता है और यदि तर घास के बीच पहुँचा तो रेगता फिरता है।यदि इसे घोघा मिल गया तो यह उसके भीतर अपने सिर के बल घुस जाता है और भीतर ही भीतर बढ़कर लंबी थैली के आकार का हो जाता है। कुछ काल में इस थैली के भीतर घटकगुच्छ उत्पन्न होजाते हैं। इस घटकगुच्छ के घटक विभागक्रम द्वारा बढ़कर पुछल्लेदार कीटों के रूप में होजाते हैं और घोघे के शरीर से बाहर निकल कर घास की पत्तियो पर चिमट जाते है। पत्तियो को जब भेड़े खाती है तब ये उनके यकृत में पहुँच जाते है और चौड़े चिपटे यकृतकीट के रूप मे हो जाते हैं। इन कीटो से कुछ उन्नत रचना मनुष्य के पेट में रहनेवाले लंबे केचुओ की होती है। एक प्रकार के और केचुए होते हैं जो जंतुओं के शरीर के भीतर नहीं होते, अधिकतर समुद्र में पाए जाते हैं। इन्हे मुँह और आंतो के अतिरिक्त रक्तवाहिनी नाड़ियाँ भी होती हैं। संवेदग्राही अवयवो का विधान भी और केंचुओ से उन्नत होता है। भेजे के छल्ले के स्थान पर दो बड़ी संवेदन-ग्रंथियाँ होती है जिन्हे हम मस्तिष्क कह सकते हैं। इसी मस्तिष्क से दो मोटे संवेदन-सूत्र पीछे की ओर शरीर की लंबाई तक गए रहते हैं। आँखे भी होती हैं।

प्राणियो मे इद्रियो का विधान किस प्रकार हुआ? पहले कहा जा चुका है कि अत्यंत आदिम कोटि के क्षुद्र जीवो मे