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हुए अतः सब से सादे और आदिम कोटि के बहुघटक जीव दुहरी या तिहरी झिल्ली के कोश के अतिरिक्त और कुछ नही थे। स्पंज या मुर्दा बादल इसी प्रकार के जीव हैं। ये समुद्र की चट्टानों आदि पर जमे रहते हैं, चल फिर नहीं सकते और कई प्रकार के होते है। स्लेट पोछने के लिये लड़के जो स्पज रखते हैं उसे बहुतो ने देखा होगा। स्पंज का शरीर छिद्रमय कोश मात्र होता है जिसके भीतर बहुत सी नालियाँ होती है। सूक्ष्म जीवों से पूर्ण जल मुखविवर से हो कर भीतर जाता है और नालियो के द्वारा चारो ओर घूम कर सारे घटकों का पोषण करता है। इन नलियो के अतिरिक्त और अलग अलग अवयव नही होते और ये नलियाँ भी भिन्न भिन्न कार्यों के लिये भिन्न भिन्न नहीं होतीं, सब समान रूप से जलवहन का कार्य करती हैं। ऐसा नही होता कि पाचन के लिये अलग नलियाँ हा और जलप्रवाह के लिये अलग। स्पंजो की वंशवृद्धि-अमैथुन विधान से भी होती है और मैथुन-विधान से भी। जिन निम्न कोटि के स्पंजो की वृद्धि अमैथुनविधान से होती है उनके शरीर पर कुड्मल या अंकुरविंदु उत्पन्न होते है जो अलग होकर बढ़ते और पूरे जीव हो जाते हैं। बतलाने की आवश्यकता नही कि ये कुड्मल स्वतंत्र घटक होते है जो विभागपरंपरा द्वारा एक से अनेक होकर शरीर की योजना करते है। मैथुनविधान वाले स्पंजो में पुं० घटक और स्त्री घटक एक ही जीव के भीतर होते हैं (उसी प्रकार जैसे अधिकांश पौधो में गर्भक्रेसर और परागकेसर एक ही फूल में होते है) । पुं० घटक फूट कर अनेक कणों मे विभक्त हो जाता है।