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ये दोनो एकघटक जीव या अणुजीव कहलाते हैं। इसी प्रकार के घटकों के योग से सब जंतुओं के शरीर बने है। मनुष्य के रक्त की श्वेत कणिकाएँ ( जो अच्छे सूक्ष्मदर्शक यंत्र द्वारा ही देखी जा सकती हैं ) अमीबा से मिलती जुलती होती हैं और उसी के समान सब व्यापार करती हैं। मोनरा और अमीबा अत्यत सादे ढाँचे के जीव है। इनके अतिरिक्त छोटे बड़े और अनेक प्रकार के एकघटक अणुजीव होते हैं जिनमे से कुछ तो इतने बड़े ( एक इंच के १०० वे भाग के बराबर ) होते हैं कि आँख से अच्छी तरह दिखाई पड़ सकते है। बहुत से अणुजीव जल में से चूने आदि का सग्रह करके अपने ऊपर कड़ी खेलड़ी बनाते हैं। कुछ अणुजीवो की खोलड़ियाँ बहुत ही सुदर और चित्राविचित्र होती हैं। जब वे अणुजीव मर जाते हैं तब खोलड़ियाँ गिर कर पानी के तल में बैठ जाती हैं। खरिया मिट्टी ऐसे ही जीवो की खोलड़ियो के तह पर तह जमने से बनती है।

जैसा कि पहले कह आए है अणुजीवी मे जोड़े नहीं होते, उनकी वृद्धि अमैथुन विधान से होती है---अर्थात् कुछ अणुजीवों मे तो यह होता है कि एक जीव के बीच से दो खड होकर दो अलग अलग जीव हो जाते हैं और कुछ के शरीर पर अकुरबिंदु निकलते हैं जो अलग होकर और बढ़कर स्वतत्र जीव हो जाते हैं। पर कुछ उन्नत कोटि के अणुजीव ऐसे भी होते हैं जिनमें मैथुन-विधान अपने मूलरूप में देखा जाता है। ये पुछल्लेवाले अणुजीवों में से है और बहुत से