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अधिक लंबा हो जाता है और उसका मध्य भाग पतला पड़ने लगता है यहाँ तक कि बहुत कम रह जाता है और जंतु बीच से दो भागों में विभक्त दिखाई पड़ता है। अंत मे मध्य से टूट कर दोनो भाग अलग अलग हो जाते हैं अर्थात् दो नए जंतु होकर अपना जीवन आरंभ करते और बढ़ते हैं। इस प्रकार पूर्व जंतु का व्यक्तित्व या जीवन समाप्त हो जाता है और उसके स्थान पर दो नए जंतु हो जाते है। ऐसे प्रजनन विधान को विभाग कहते हैं।

जंतुओ का प्रधान लक्षण वह क्रिया है जो उनमे वाह्य वस्तुओ के संपर्क से उत्पन्न होती है जैसे ईथर या आकाश द्रव्य की लहरो का संपर्क जिसका ग्रहण नेत्रेद्रिय में प्रकाश रूप से होता है, वायु की तरंगो का संपर्क जिसका ग्रहण श्रोत्रेद्रिय मे शब्द रूप से होता है, स्थूल पदार्थों का सपर्क जिसका ग्रहण त्वचा को स्पर्श रूप से होता है। मोनरा को अलग अलग अवयव या इंद्रियाँ नही होतीं। पर इससे यह न समझना चाहिए कि वह वाह्य विषयों का ग्रहण नहीं करता। भिन्न भिन्न विषयो का ग्रहण उसमे सर्वत्र समान रूप से होता है। यह ग्रहण चाहे अत्यंत सूक्ष्म वा अल्प हो, पर होता अवश्य है। किसी वस्तु से छू जाने पर उसका शरीर सुकड़ जाता है। इस प्रकार स्पर्श का संवेदन उसमे प्रत्यक्ष देखा जाता है।

मोनरा से कुछ उन्नत कोटि का जीव अमीबा ( अस्थिगकृति अणुजीव ) है जिसमें एकरूपता या निर्विशेषत्व ( एक भाग से दूसरे भाग मे कोई विशेषता न होना ) का भंग