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सूक्ष्म कललविंदु मात्र होते हैं। ये बहुत अच्छे सूक्ष्मदर्शक यंत्र द्वारा ही दिखाई पड़ सकते हैं। अत्यत सूक्ष्म अणुरूप ऐसे जीवों को छोड़ जिनके व्यापार आदि स्पष्ट रूप से निर्धारित नहीं हो सके हैं सब से सादा और सूक्ष्म जीव जिसके कार्यकलाप देखे जा सके हैं मोनरा है। यह जल मे पाया जाता है। इसका सारा शरीर मधुविंदुवत् सर्वत्र समान होता है, उसमें पेट, मुहूँ, आँख, कान, नाक, हाथ, पैर इत्यादि अलग अलग अंग नहीं होते। इन अंगों से जो व्यापार होते है वे आवश्यकतानुसार इस जंतु के प्रत्येक भाग से सम्पादित होते हैं। जीवों के व्यापार तीन हैं--पोषण, प्रजनन और वाह्यविषय-ग्रहण। मोनरा प्रत्येक भाग से अपना आहार भीतर ले सकता है, प्रत्येक भाग से पचा कर निकाल सकता है प्रत्येक भाग से वायु को खींच और छोड़ सकता है। यह अपने चारो ओर जिधर आवश्यक होता है उधर लंबे लंबे शंकु या पदाभास निकालता है। इसका शरीर मधुविद्वत् तो होता ही है जिधर शंकु या पदाभास निकलते है उसी ओर को ढल पड़ता है। इसी प्रकार यह चलता है और अपने शिकार या आहार ( जल मे मिले हुए अत्यंत सूक्ष्म अणूद्भिद् या जंतु ) को छोप लेता है। शरीर का प्रत्येक भाग आहार चूस सकता और मल बाहर निकाल सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि अत्यंत क्षुद्र कोटि के जीवों में स्त्र पुं० विधान नहीं होता। उनकी अमैथुन सृष्टि होती है। अब मोनरा मे प्रजनन या वृद्धि किस प्रकार होती है यह देखिए। जो मोनरा आहार आदि पाकर खूब पुष्ट होता है वह कुछ