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कललरस कहते हैं। जिन्हें हम सजीव व्यापार कहते है---जैसे, आपसे आप चलना, खाना, पीना, बढ़ना, आहार की ओर दौड़ना, छूने से हटना-वें सब इसी अद्भुत द्रव्य की क्रियाएँ है। इसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म सजीव कणिका भी ये सच व्यापार करती है। यह अंडे की जरदी से मिलताजुलता मधु के समान चिपचिपा दानेदार द्रव्य है जो अणुजीव के रूप में जल के भीतर भी इधर उधर घूमता फिरता पाया जाता है और छोटे बड़े सब प्राणियो के शरीर में भी। इसकी गूढ़रचना अंगारक (कारबन), अम्लजन गैस (आक्सजन), नत्रजन गैस और हाइड्रोजन गैस द्वारा संघटित द्रव्यो के विलक्षण मेल से हुई। इन द्रव्यों में अंगारक ही मुख्य है।रासायनिको की परीक्षा से ये ही चार मूल द्रव्य इसमें मुख्यतः पाए गए। जल, गंधक, फासफर को अंश भी कुछ रहता है। यद्यपि अपने विश्लेषण द्वारा रासायनिक इस अद्भुत द्रव्य के मूल उपादानो को जान गए है पर वे उनके द्वारा संघटित अणुओ की विलक्षण योजना को कुछ भी नही समझ सके है।

विकाशसिद्धांत के अनुसार इस सजीव द्रव्य की उत्पत्ति निर्जीव द्रव्य से माननी पड़ती है। पर कोई रासायनिक आज तक अपनी योजना द्वारा इसे उत्पन्न करने में समर्थ नही हुआ। यह केवल सजीव प्राणियो---जंतुओ और पौधो-में ही पाया जाता है। यह जब पाया जाता है तब शरीर ( विदुरूपी शरीर ही सही) रूप में ही जीवन के व्यापार करता पाया जाता है, निर्जीव द्रव्यों से बनता हुअर कहीं नहीं पाया जाता। इससे बहुत से लोग इसकी उत्पत्ति निर्जीव द्रव्य से नही