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कि इतना सब होने पर भी यह ठीक ठीक नही कहा जा सकता कि उन्नतिक्रम के अनुसार जीवों की वर्गपरंपरा मे किस विशेष वर्ग से चेतना का प्रादुर्भाव होता है। मुझे तो इसी सिद्धांत के सत्य होने की संभावना अधिक प्रतीत होती है जिसके अनुसार चेतना संवेदनसूत्रो के केंद्रीभूत होने पर उत्पन्न होती है। छोटे जीवों मे संवेदनसूत्र एक स्थान पर केन्द्रीभूत नहीं होते, उनमे पूर्ण विज्ञानमय कोश नहीं होता। जिन जीवो मे संवेदन सूत्रो का केन्द्ररूप अवयव या अंत:करण होता है, उन्नत ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं अर्थात् जिनमे विज्ञानमय कोश होता है उन्ही मे चेतना होती है।

(३) चेतना सब प्राणियों में होती है।

छोटे बड़े जितने जीव हैं सब चेतन होते है। यह सिद्धांत उद्भिदो और जंतुओ के आंतरिक व्यापारो मे भेद करता है। प्राचीनो का भी यही विश्वास था कि जंतुओमे इन्द्रियानुभव और चेतना होती है, पर पौधो में नहीं। पर १९ वी शताब्दी के मध्यभाग मे जब स्पज आदि क्षुद्र जंतुओं की आतरिक क्रियाओ की परीक्षा की गई तब इस विश्वास की असारता प्रकट होगई। स्पंज आदिको के स्थावर जंतु होने मे तो कोई संदेह नही, पर उनमें चेतना का कोई आभास उसी प्रकार नही पाया जाता जिस प्रकार पौधो मे। एकघटक अणुजीवो का जब सूक्ष्म परीक्षा की गई तब उनकी और एकघटक अणूद्भिदों की आंतरिक क्रियाओं मे कोई विशेष अंतर नही पाया गया।

(४) चेतना सब शरीरियों में होती हैं, क्या