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विशिष्ट जंतुवर्गों को एक दूसरे से क्रमशः विकाश हुआ है मेरुरज्जु की क्रमोन्नति के विचार से मनुष्य तक उनके आठ वर्ग होते हैं---(१) अकरोटीमत्स्य, (२) चक्रमुखमत्स्य *, (३) मत्स्य, (४) जलस्थलचारी जंतु, (५) अजरायुज जतु, (६) आदिम जरायुज जंतु, (७) किंपुरुषवर्ग, (८) नराकार वनमानुस और मनुष्य।

मेरुरज्जुवाले जीवो मे सब से प्रथम अकरोटी मत्स्य उत्पन्न हुए जिनके वर्ग का केवल एक जंतु कुलाट आजतक समुद्र के किनारे मिलता है। इसके मनोव्यापार का करण एक सीधी सादी भेजे की नली है जिसमे मस्तिष्क नही होता। इसी से आगे चलकर चक्रमुख मत्स्यो की उत्पत्ति हुई जिनके वर्ग के दो चार जंतु अब भी पाए जाते हैं। इनमे मेरुरज्जु का अगला छोर फैल कर एक घट के रूप मे हो जाता है जिसके पाँच विभाग हो जाते है----बड़ा मस्तिष्कघट, अतरवर्ती मस्तिष्कघट, मझला मस्तिष्कघट, छोटा मस्तिष्कघद और पिछला मस्तिष्कघट। इसी पंचघटात्मक मस्तिष्क से समस्त कपाल वाले जंतुओ के मस्तिष्क का विकाश हुआ है। साधारण मछलियो में ये पाँचो घट अधिक स्पष्ट होते है। मछलियो से फिर जलस्थलचारी जंतुओं की उत्पत्ति हुई जिनके वर्ग के मेढक


  • बाम की तरह की एक छोटी मछली जिसके मुख का विवर गोल होता है। इसके मुंह में नीचे ऊपर के जबड़े नहीं होते, महीन महीन दाँत चारो और होते हैं जिनके द्वारा यह चट्टानों या बड़ी मछ.. लियों के शरीर पर, चिमटी रहती है।