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पृथक् संवेदन और (ख) घटको के सारे समूह का एक सामान्य संवेदन जिसका पता सारे घटकों की उस सामान्य प्रवृत्ति से लगता है जिसके अनुसार वे सब के सब मिलकर एक कोश निर्माण करते है। जैसा कि कहा जा चुका है गर्भावस्था का यह कललघट वह रूप है जिस रूप मे सारे जंतुओ के अदिम पूर्वज किसी कल्प मे थे। इस प्रकार के घटकसमूह अबतक जल के रोईदार तथा और कई प्रकार के एकघटक अणुजीवो मे पाए जाते है। ये एकघटक जीव उसी प्रकार समूह बनाकर रहते है जिस प्रकार कललकोश के घटक।

(३) तंतुजालगत या समवाय आत्मा---वर्गपरपरागत आत्मविकाश की यह तृतीयावस्था है। उन सब बहुघटक पौधो और जीवो मे जिनके घटक तंतुजाल के रूप मे मिलकर एक हो जाते है दो कोटि के मनोव्यापार देखे जाते है---(१) तंतुजाल के एक एक घटक की आत्मा का अलग अलग मनोव्यापार। और(ख)सारे तंतुजाल अर्थात् घटकसमष्टि का मनोव्यापार। मनोव्यापारो के इस समष्टिविधान से ही बहुत से घटक मिलकर एक शरीर हो जाते है। यह तंतुजालगत आत्मा या आत्मसमष्टि सारे घटको की पृथक् पृथक् घटकात्माओ को अंगागिभाव से चलाती है। निम्नकोटि के बहुघटक पौधो और जंतुओ मे आत्मा की यह दोहरी प्रवृत्ति ध्यान देने योग्य है। परीक्षा द्वारा इसे हम प्रत्यक्ष देख सकते है। किसी पौधे को लेकर हम देख सकते है कि उसके प्रत्येक घटक की निज की संवेदना और गति भी होती है और साथ ही प्रत्येक तंतुजाल या अवयव का (जो कई समानधर्मवाले घटको के योग से संघ