पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२९०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १२७ )


मनुष्य तथा और अनेकघटक जीवों के उन्नत सनोव्यापारों का बीज समझना चाहिये।

जल मे रहनेवाले भिन्न भिन्न प्रकार के एकघटक कीटाणुओ की परीक्षा करके मैंने कुछ दिन पहले यह मत प्रकट किया था कि प्रत्येक सजीव घटक में कुछ मानसिक वृत्तियाँ होती हैं, और अनेकघटक जीवों और पौधों की मानसिक वृत्ति उन घटको की मानसिक वृत्तियो की समष्टि है जिनकी योजना से उनका शरीर संघटित रहता है। स्पंज आदि क्षुद्र कोटि के अनेकघटक जीवो में शरीर का प्रत्येक घटक मानसिक क्रिया मे समान रूप से प्रवृत्त होता है पर उन्नत कोटि के जीवों मे कार्यविभाग के नियमानुसार कुछ चुने हुए घटक ही इस क्रिया के लिये नियुक्त हो जाते है और मनोघटक कहलाते हैं।

घटकात्मा की भी ऊँची नीची कई श्रेणियाँ होती हैं। कुछ का व्यापार तो अत्यंत सीधासादा होता है और कुछ का जटिल होता है। सब से आदिम और क्षुद्र कोटि के एकघटक जीवो में संवेदन और गतिशक्ति घटकस्थ कललरस में सर्वत्र एकरस होती है। जो कुछ व्यापार वे कर सकते है अपने रसविदु रूपी शरीर के प्रत्येक भाग से कर सकते है। उन्नत कोटि के एकघटक अणुजीवो मे कुछ करणांकुर उत्पन्न हो जाते है जिनसे गति आदि व्यापार होते है। इस प्रकार के करण जल के कुछ सूक्ष्म कीटाणुओं मे स्थिर पादांकुरो या रोइयो के रूप मे देखे जाते हैं। इन कीटाणुओं के कललरस के मध्य मे एक सूक्ष्म गुठली होती है जिसे घटक का अंतःकरण समझना चाहिए। सब से आदिम वनस्पति और सब से