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की परीक्षा अत्यंत प्रयोजनीय है। हमे भ्रूण के मस्तिष्कविकाश और शिशु के मनोव्यापारो की ओर ध्यान देना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टि से विचार न करनेवाले आत्मा की क्रमशः वृद्धि नही मानते। वे आत्मा को सदा एकरस मानते है। आत्मा के संबंध मे जो भिन्न भिन्न प्रकार के विचार प्रचलित हैं उनमे से कुछ ये है---

(१) आवागमन---इस सिद्धांत के अनुसार आत्मा एक शरीर से निकल कर दूसरे शरीर मे, दूसरे से तीसरे मे इसी प्रकार बराबर गमन करती रहती है और नाना योनियो मे भ्रमण करती है। वह मनुष्ययोनि मे भी आ जाती है और फिर उसमे से निकल कर मनुष्य या और कोई योनि प्राप्त करती है।

(२) आनयन--अर्थात् आत्माओ का कही अक्षय्य भांडार है जहॉसे बराबर आत्माएँ शरीरो मे लाई जाती है और जहॉ फिर चली जाती है।

(३) ईश्वर द्वारा सृष्टि-ईश्वर आत्माओं की सृष्टि करता है और उन्हे संचित रखता है।

जीवनतत्त्व के अनुसंधान द्वारा अपर लिखी कल्पनाएँ असार प्रमाणित हो चुकी है। पहले कहा जा चुका है कि गर्भविधान मे पुंस्तत्त्व और स्त्रीतत्त्व दोनो सूक्ष्म घटक मात्र है। इन दोनो घटको में ऐसे शारीरिक गुण होते है जिन्हे हम घटकात्मा कह सकते है। इन दोनो बीजघटको मे गति और संवेदन शक्ति होती है। गर्भाड या अंडघटक जल मे रहने वाले अस्थिराकृति अणुजीवो के समान चलते फिरते है। अत्यंत सूक्ष्म शुक्रकीटाणु अपनी रोइयो के सहारे वीर्य मे उसी