पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२५८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९५ )


इसके ऊपर की ओर एक मर्मस्थल होता है और भीतर की ओर एक गत्यात्मक पेशीतंतु होता है। मर्मस्थल छूते ही यह पेशीतंतु सुकड़ जाता है।

( ५ ) समुद्र मे तैरनेवाले छत्रककीटो मे संवदनसूत्र और पेशी युक्त एक घटक के स्थान पर दो घटक मिलते है जो एक सूत्र से सवद्ध रहते है। इनमे से एक तो बाहर संवेदनग्राही घटक होता है, दूसरा चमड़े के भीतर पेशीघटक होता है। प्रतिक्रिया के इस द्विघटकात्मक करण मे बाहरी घटक तो संवेदनग्रहण करने की इद्रिय है और भीतरी घटक गत्यात्मक कर्मेंद्रिय है। दोनो घटको को मिलानेवाला बीच मे जो मनोरसनिर्मित सूत्र होता है उसी के द्वारा उत्तेजना एक घटक से दूसरे घटक तक पहुँचती है।

( ६ ) प्रतिक्रिया का जो विधान आगे चल कर मिलता है उसमे दो दो के स्थान पर तीन तीन घटक मिलते हैं। सबंधकारक सूत्र के स्थान पर एक स्वतंत्र घटक ग्रंथि के रूप में प्रकट होता है जिसे हम मुनघटक या संवेदनग्रंथि-घटक कह सकते है। इसी घटक के द्वारा अचेतन अंतःसंस्कार उत्पन्न होता है अर्थात् संवेदनो के स्वरूप अकित होने लगते है। ऊपर कहा जा चुका है कि इस अवस्था मे चेतन अंत:करण न रहने के कारण उन स्वरूपो का बोध नही हाता। उत्तेजना पहले संवेदग्राही घटक से ईस मध्यस्थ मनोघटक मे पहुँचती है और फिर यहाँ से क्रियोत्पादक पेशी-घटक में पहुँच कर गति की प्रेरणा करती है। प्रतिक्रिया का यह त्रिघटकात्मक करण बिना रीढ़वाले जंतुओ में मिलता है।