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( ख ) घट के भीतर कललरस की वैसीही गति या प्रवाह।

( ग ) रोई या सुतड़ेवाले अणुजीवो, शुक्रकीटाणुओ इत्यादि की कुटिल गति। ( ये जीव अपने रोइयो या सुतड़ो के सहारे जल या द्रव पदार्थ मे रेगते हैं। )

( घ ) मांसपेशियो * के संचालन की गति जो अधिकतर जंतुओ मे देखी जाती है।

संवेदन और गति के संयोग से जो मूल या आदिम मनोव्यापार उत्पन्न होता है उसे प्रतिक्रिया कहते है। इसमे गति चाहे किसी प्रकार की हो संवेदन उत्पन्न करनेवाली विषयोत्तेजना के कारण होती है। इसीसे इसे उत्तेजित गति कहते है। कललरस मे उत्तेजित होने का गुण होता है। जीव के चारो ओर स्थित पदार्थों मे जो भौतिक या रासायनिक परिवर्तन उपस्थित होता है कुछ अवस्थाओ मे वह मनोरस को उत्तेजित करता है जिससे शरीर मे गति का वेग छूट पड़ता है। जड़सृष्टि मे भी इस प्रकार उत्तेजना पाकर बेग के छूटने का भौतिक व्यापार देखा जाता है, जैसे चिनगारी पड़ने से वारूद का भड़कना, ठोकर या आघात लगने से


  • ककाल से लगा हुआ मास बहुत से सूक्ष्म टुकड़ो या ग्राथियो से बना होता है। इन अलग अलग ग्रथियों को पेशी कहते है। पेशियाँ कई आकार की होती है--कोई लबी, कोई पतली, कोई मोटी, कोई चौकोर और कोई तिकोनी। ये महीन सूतो से जुड़ी रहती है, यदि सूत हटा दिए जायँ तो ये अलग अलग हो जाती हैं। जितनी गतियाँ शरीर मे होती हैं सब इन्हीं मास पेशियों ही के द्वारा।