पृष्ठ:विश्व प्रपंच.pdf/२५१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ८८ )


के कुछ परिवर्तनो द्वारा उन पदार्थों पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रकाश और ताप, आकर्षण और विद्युदाकर्षण, रासायनिक क्रियाएँ और भौतिक व्यापार सब के सब संवेदनात्मक मनोरस में उत्तेजना या क्षोभ उत्पन्न करके उसके अण्वात्मक विधान मे परिवर्तन उपास्थत करते हैं। मनोरस की इस संवेदना की क्रमशः पॉच अवस्थाएँ है---

(१) जीवविधान की प्रारंभिक अवस्था मे समस्त मनोरस ही सर्वत्र समानरूप से संवेदनग्राही होता है और क्षोभकारक पदार्थ पर बाहर से प्रभाव डालता हैं। सब से क्षुद्र कोटि के अणुजीव और बहुत से पौधे इसी अवस्था मे रहते है।

(२) दूसरी अवस्थावह है जिसमे शरीर के ऊपर विषयविवेकरहित इंद्रियाभास कललरस के सुतड़ो या बिंदियो के रूप मे प्रकट होते हैं। ये स्पर्शेंद्रिय और चक्षु के पूर्व रूप है जो कुछ उन्नत अणुजीवो तथा दूसरे क्षुद्र जंतुओ और पौधो मे देखे जाते है।

(३)तीसरी अवस्था में इन्ही मूलविधानो से विभक्त होकर अलग अलग कार्यो के उपयुक्त विशिष्ट इंद्रियाँ उत्पन्न होती है। इनमे रसनेद्रिय और घ्राणेद्रिय रासायनिक करण है अर्थात् रासायनिक क्रियाओ को ग्रहण करती है; स्पर्शेद्रिय, श्रवण, और चक्षु, भौतिक करण हैं अर्थात् इनसे कोमलता, कठोरता, शीत, उष्ण, शब्द ( वायुतरंग ), तथा वर्ण और आकृति इत्यादि भौतिक गुणो और व्यापारो का ग्रहण होता है। इन "इन्द्रियों की शक्ति" कोई निहित मलगण