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संवधी वे ही नियम समस्त जीव-सृष्टि पर घटते हैं--क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या उद्भिद्। जिस प्रकार भिन्न भिन्न जीवो की एक मूल से उत्पत्ति देखने से समस्त जीवसृष्टि की एकता प्रमाणित होती है उसी प्रकार अणुजीव से लेकर मनुष्य तक मनस्तत्व की एकता भी सिद्ध होती है।

रोमेंज ने डारविन के मनोविज्ञान को और प्रवर्द्धित किया। उसने दो ग्रंथ विकाशक्रमबद्ध मनोविज्ञान पर लिखे जो अपने ढंग के निराले हुए। पहला ग्रंथ जंतुओं के मनोविकाश पर है। उसमे उसने क्षुद्र जंतुओं के संवेदन-व्यापार और अंत प्रवृत्ति से लेकर उन्नत जीवों की चेतना और बुद्धि तक की श्रृंखलावद्ध परपरा दिखाई है। दूसरे ग्रंथ में उसने मनुष्य के अंतकरण का विकाश और उसकी शक्तियों का उद्भव दिखाया है। उसमे पूर्णरूप से सिद्ध किया गया है कि मनुष्य और पशु के अत:करण वा आत्मा मे कोई तत्त्वभेद नहीं है। मनुष्य मे संकल्प विकल्पात्मक विचार और प्रत्याहार आदि करने की जो शक्ति है वह दूध पिलानेवाले मनुष्येतर जीवों के अकल्पनात्मक कोटि के अंत:संस्कारो से ही क्रमशः स्फुरित और विकसित हुई है। मनुष्य की बुद्धि, वाणी, और आत्मबोध आदि की उन्नत शक्तियाँ किंपुरुष वनमानुस आदि पूर्वजो की मानसिक शक्तियों से उन्नत होते होते उद्भूत हुई हैं। मनुष्य की अंत करण-शाक्तं और दूसरे जीवों की अंत.करण-शक्ति मे केवल मात्राभेद है, तत्वभेद नही। शक्ति वही है, पर मनुष्य मे वह अधिक है और दूसरे जीवा मे कम।

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