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नियम गणित के नियमो के समान ठीक ठीक नाप तौल के साथ सर्वत्र नहीं स्थिर किए जा सकते। शरीरविज्ञान में केवल इंद्रियो के व्यापारी का निरूपण गणित की रीति से कुछ हो सकता है, मस्तिष्क के और व्यापारो का नहीं।

प्राणिविज्ञान के एक छोटे से अंग का गणित की रीति से कुछ प्रतिपादन हो सका है और उसका नाम मनोभूतविज्ञान ( Psycho-Physics ) रक्खा गया है। इस विज्ञान के प्रतिष्ठाता फेक्नर और वेवर नामक वैज्ञानिको ने पहले यह पता लगाया कि सब प्रकार के इंद्रियानुभव बाहरी विषयसंपर्क की उत्तेजना पर निर्भर है और जिस हिसाब से विषयसपर्क की उत्तेजना घटती या बढ़ती है उसी हिसाब से इंद्रियसंवेदन भी घटता या बढ़ता है। उन्होने स्थिर किया कि कम से कम इतनी मात्रा की उत्तेजना होगी तभी इंद्रियसंवेदन होगा, और प्राप्त उत्तेजना मे इतनी मात्रा का अंतर पड़ेगा तब संवेदन मे कुछ अंतर जान पड़ेगा। दर्शन, श्रवण, स्पर्श (दबाव) संवेदनों के विषय मे यह निर्दिष्ट नियम है कि उनमे अंतर उत्तेजना के संबंध के अंतर के हिसाब से पड़ता है। अस्तु, फेक्नर ने अपने मनोभूतविज्ञान का एक प्रधान नियम स्थिर किया कि संवेदना की वृद्धि संख्योत्तर क्रम ( जैसे २,४,६,८,१० ) से होती है और उत्तेजना की गुणोत्तर क्रम से ( जैसे २,४,८,१६, ३२ ) * । पर


  • मान लीजिए कि ऑख पर पहले एक दरजे का प्रकाश पड़ा फिर तुरंत १०० दरजे का अर्थात् उससे सौ गुना प्रकाश पड़ा और