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मैंने यह स्थिर किया कि गर्भ के उत्तरोत्तर क्रमविधान के अनुसार ही जीववर्गों का भी उत्तरोत्तर क्रमविधान हुआ है। जिस क्रम से भ्रूण गर्भ के भीतर एक अणुजीव से एक रूप के उपरांत दूसरे रूप को प्राप्त होता हुआ पूरा सावयव जंतु हो जाना है उसी काम से एकघटक अणुजीव से भिन्न भिन्न रूपो के छोटे बड़े जीवो की उत्पत्ति होती गई है। अस्तु, दोनो प्रकार के विकाश समान नियमो के अनुसार होते हैं। गर्भविधान या व्यक्तिविकाश-विधान वर्गविकाश विधान की संक्षिप्त


गया, जैसे उनके अगले पैर मछली के परो के रूप के हो गए, यद्यपि उनमे हड्डियाँ वेही बनी रही जो घोडे, गदहे आदि के अगले पैर मे होती है। कई प्रकार के ह्वेलो मे पिछली टॉगों का चिन्ह अब तक मिलता है।

जीवो के ढॉचो मे बहुत कुछ परिवर्तन तो अवयवो के न्यूनाधिक व्यवहार के कारण होता है। अवस्था बदलने पर कुछ अवयवो का व्यवहार अधिक करना पड़ता है और कुछ का कम। जिनका व्यवहार अधिक होने लगता है वे वृद्धि को प्राप्त होने लगते है और जिनका कम होने लगता है वे दब जाते है। मनुष्य ही को लीजिए, जिसकी उत्पत्ति बनमानुसो से धीरे धीरे हुई है। ज्यो ज्यों दो पैरो के बल खड़े होने और चलने की वृत्ति अधिक होती गई त्यो उसके पैर चिपटे, चौड़े और कुछ दृढ होते गए और ऍडी पोछे की ओर कुछ बढ़ गई। बनमानुस से मनुष्य मे ढॉचे आदि का बहुत अधिक विभेद नहीं हुआ। एक ही ओर बहुत अधिक विशेषता हुई, उसके अतःकरण या मस्तिष्क की वृद्धि अधिक हुई।