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वाह्यावस्थानुरूप परिवर्तन की ओर प्रवृत्त करती है। पहली शक्ति वही है जिसे आजकल पैतृक प्रवृत्ति * कहते है और दूसरी वह है जो अब स्थिति--सामंजस्य X कहलाती है। गेटे के विचार यद्यपि अनेक प्रकार के प्रमाणो से पुष्ट नहीं हो पाए थे पर उनसे डारविन और लामार्क के सिद्धांतो का आभास पहले से मिल गया।

जीवो के क्रमश रूपांतरित होने का सिद्धांत पूर्णरूप से फरासीसी वैज्ञानिक लामार्क द्वारा ही स्थापित हुआ। १८०२ मे उसने जीवो का परिवर्तनशीलता और रूपांतरविधान के संबंध मे अपने नवीन विचार प्रकट किए जिन्हे आगे चल कर उसने पूर्णरूप से स्थिर किया। पहले पहल उसीने जीव भेदो के स्थायित्वसंबधी प्रवाद के विरुद्ध यह मत प्रकट किया कि योनि-भेद भी जाति, वर्ग, कुल आदि के समान बुद्धिकृत प्रत्याहार, या सापेक्ष भावना मात्र है। उसने निधारित किया कि सब योनियाँ ( जीवभेद ) परिवर्तनशील है और काल पाकर अपने से प्राचीन योनियो से उत्पन्न हुई है। जिन आदिम मूल जीवो से ये सब योनियॉ उत्पन्न


  • पैतृक-प्रवृत्ति द्वारा जीवो का एक विशिष्ट ढॉचा वश परपरागत बराबर चला चलता है।

×स्थिति सामजस्य के द्वारा वाह्य अवस्था के अनुसार प्राणियो के अगों मे कुछ विभेद होता जाता है। जैसे मछली और मेढक के शरीर का भेद जो जल की स्थिति से जल और स्थल की उभयात्मक स्थिति मे आने के कारण हुआ है।