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विकाश के इस वैज्ञानिक निरूपण का पहले बहुत विरोध किया गया क्योकि वह देवकथाओ और धर्मसंबंधी प्रवादो के प्रतिकूल था। प्राचीन समय मे सृष्टि की उत्पत्ति के संबंध मे बहुत सी कथाएँ भिन्न भिन्न मतो मे प्रचालित थी। योरप मे ईसाई धर्म का डंका बजता था। ईसाई धर्माचार्य ही ऐसे विषयो के निर्णय के अनन्य अधिकारी माने जाते थे। अतः उनका निर्णय इंजील मे जो सृष्टि की उत्पत्ति की कथा लिखी है उसीके अनुसार होता था। यहाँ तक कि सन् १७३५ मे जब लिने नामक स्वेडन के एक वैज्ञानिक ने ससार के जीवो का वर्गविभाग किया तब वह भी बाइबिल का सिद्धात मानते हुए चली। बड़ा भारी काम उसने यह किया कि प्राणिविज्ञान मे वर्ग-विवरण के लिए दोहरे नामो की प्रथा चलाई। प्रत्येक जंतु के लिए एक तो उसने भेदसूचक या योनिसूचक नास रक्खा, फिर उसके आदि मे उसका वर्गसूचक नाम रख दिया। जैसे श्वन् शब्द के अंतर्गत उसने कुत्ता, भेडिया, गीदड़, लोमड़ी आदि जंतु लिए, फिर इन जंतुओ को इस प्रकार अलग अलग वैज्ञानिक नाम दिएश्वकुक्कुर ( पालतू कुत्ता ), श्ववृक ( भेडिया ), श्वजंबुक (गादड़), श्वलोमशा (लोमड़ी)। श्चन् एक वर्ग का नाम हुआ कुत्ता, लोमड़ी, गीदड़ आदि अलग अलग विशिष्ट योनियो के नाम हुए। दोहरे नामकरण की यह प्रथा इतनी-उपयोगी सिद्ध हुई कि इसका प्रचार वैज्ञानिक मंडली मे हो गया।

लिने ने जीवो का वर्ग-विभाग तो किया पर वह भिन्न भिन्न वर्गों के अवांतर भेदो या विशिष्ट उत्पत्तिकम आदि का