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वनमानुसो की रहनसहन, स्वभाव, समझ, बच्चो के पालने पोसने का ढंग आदि मनुष्य के से होते है। शरीर व्यापार विज्ञान ने और बातो मे भी साद्श्य दिखलाया है जो साधारण दृष्टि से देखने मे नही आता-हृपिड की क्रिया मे, स्तनो के विभाग में, दांपत्य विधान मे। दोनो के स्त्री-पुरुष-धर्म मिलते जुलते है। वनमानुसो की बहुत सी ऐसी जातियाँ होती है जिनकी मादा के गर्भाशय से उसी प्रकार सामायिक रक्तश्राव होता है जिस प्रकार स्त्रियो को मासिकधर्म होता है। बनमानुस की मादा मे दूध उसी प्रकार उतरता है जिस प्रकार स्त्रियो मे। दूध पिलाने का ढंग भी एक ही सा है।

सब से बढ़ कर ध्यान देने योग्य बात तो यह है कि मिलान करने पर वनमानुसो की बोली मनुष्य की वर्णात्मक वाणी के विकाश की आदिम अवस्था प्रतीत होती है। एक प्रकार का वनमानुस होता है जो कुछ कुछ मनुष्यो की तरह गाता और सुर निकालता है। कोई निष्पक्ष भाषातत्वविद् इस बात को मानने मे आगापीछा न करेगा कि मनुष्य की विचारव्यंजक विशद वाणी पूर्वज वनमानुसो की अपूर्ण बोली से क्रमशः धीरे धीरे निकली है।

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