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होते हैं पर कुछ ऐसे है जो एक विशेष शक्ति द्वारा होते है। यह शक्ति समस्त भूतो से परे तथा द्रव्य को भौतिक और रासायनिक क्रिया से सर्वथा स्वतंत्र मानी गई है। यह स्वयंप्रकाश शक्ति जड़ पदार्थों मे नही होती और भूतो को अपने आधार पर चलाती है। संवेदनसूत्रो की वेदनात्मक क्रिया, चेतना, उत्पत्ति, वृद्धि आदि ऐसी बाते थी जिनके लिये भौतिक और रासायनिक कारण बतलाना अत्यत कठिन था। इस अभौतिक शक्ति का व्यापार उद्देश्यात्मक * माना गया जिससे दर्शनशास्त्र मे उद्देश्यवाद का समर्थन हुआ। प्रसिद्ध दार्शनिक काट ने भी कह दिया कि यद्यपि सिद्धांतदृष्टि से सृष्टि के व्यापारो का भौतिक कारण बतलाने मे बुद्धि मे अपार सामर्थ्य है पर जीवधारियो के चेतनव्यापारो का भौतिक कारण बतलाना वास्तव मे उसकी सामर्थ्य के बाहर है, अतः हमे उनका एक ऐसा कारण मानना ही पड़ता है जो उद्देश्यात्मक अर्थात् भूतो से परे है। फिर तो उद्देश्यवाद एक प्रकार निर्विवाद सा मान लिया गया। बात स्वाभाविक ही थी, क्योकि शरीर के भीतर रक्तसचार आदि व्यापारो का भौतिक, और पाचन आदि क्रियाओ का रासायनिक हेतु तो बतलाया जा सकता था पर पेशियो और संवेदन सूत्रो की अद्भुत क्रियाओ तथा अंत करण (मन) की विलक्षण वृत्तियो का कोई सामाधानकारक हेतु निरूपित नही हो सकता था। इसी प्रकार किसी प्राणी मे भिन्न


• यह सिद्धात कि सृष्टि के व्यापार उद्देश्य रखनेवाली एक चेतन शक्ति के विधान द्वारा होते है।