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क्रिया ही होती तो विश्व के समस्त परमाणु अलग अलग विखरे होते, मिल कर जगत् की योजना न करते।

द्रव्य और शक्ति ( गति ) का नित्य संबंध है। एक की भावना दूसरे के बिना हो नही सकती। न शक्ति के बिना द्रव्य रह सकता है और न द्रव्य के आश्रय के बिना शक्ति कार्य कर सकती है। अपने चारों ओर जो कुछ हम देखते है वह सब द्रव्य और शक्ति का ही कार्य है। कोई द्रव्य-खड लीजिए, शति ही से उसकी स्थिति ठहरेगी। जमीन पर पडा हुआ एक ढेला ही लीजिए। आप के देखने में तो वह महा जड और निष्क्रिय है। पर विचार कर देखिए तो गतिशक्ति की क्रिया बराबर उसमें हो रहा है, बल्कि यो कहिए कि उसी क्रिया से ही उसकी स्थिति है। वह जमीन पर पड़ा क्यों है? पृथ्वी की आर्कषण-शक्ति से। वह ढेले के रूप में क्यों है ? उसके अणु आकर्षण-शक्ति द्वारा परस्पर सबद्ध है।

द्रव्य और शक्ति दोनो अक्षर और अविनाशी है। वे अपने एक रूप से दूसरे रूप में जा सकते है, पर नष्ट नही हो सकते। उनका अभाव नहीं हो सकता। सिद्धांत यह कि विश्व में जितना द्रव्य है उतना ही सदा से है, और सदा रहेगा-उतने से ने घट सकता है, न बढ़ सकता है। इसी प्रकार शक्ति को भी ममझिए जो द्रव्य मे समवेत है। यह दार्शनिक अनुमान नहीं है, परीक्षा सिद्ध सत्य है। मोमबत्ती जल कर नष्ट नहीं हो जाती, धुएँ के रूप में अर्थात् वायव्य रूप में हो जाती है। यदि इसे वायव्य पदार्थ को