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भी वास्तव में चतुष्पद ही है। उसने अच्छी तरह दिखलाया कि मेढक से लेकर मनुष्य तक समस्त स्थलचारी उन्नत रीढ़वाले जीवो के चार पैरो की रचना एक ही नमूने पर कुछ विशेष अवयवा से हुई है। मनुष्य के हाथो और चमगादर के डैनो की ठटरी का ढॉचा वैसा ही होता है जैसा कि चौपायों के अगले पैर का। यदि हम किसी मेढक की ठटरी लेकर मनुष्य या बंदर की ठटरी से मिलावे तो इस बात का ठीक ठीक निश्चय हो सकता है। सन् १८६४ मे जिजिनबाबर ने यह दिखलाया कि किस प्रकार स्थलचारी मनुष्यो का पाँच उंगलियोवाला पैर आदि मे प्राचीन मछलियो के इधर उधर निकले हुए परों ही से क्रमशः उत्पन्न हुआ है। अस्तु, मनुष्य एक चतुष्पद् जीव है।

रीढ़वाले जानवरो में दूध पिलानेवाले सब से उन्नत और पीछे के है। पक्षियो और सरीसृपो के समान निकले तो ये भी प्राचीन जलस्थलचारी जंतुओ ही से है पर इनके अवयवो मे बहुत सी विशेषताएं है। बाहर इनके शरीर पर रोएँदार चमड़ा होता है। इनमे दो प्रकार की चर्मग्रंथिया होती है—--एक स्वेदग्रंथि दूसरी मेदग्रंथि। उदराशय के चर्म में एक विशेष स्थान पर इन ग्रंथियो की वृद्धि से उस अवयव की उत्पत्ति होती है जिसे स्तन कहते है और जिसके कारण इस वर्ग के प्राणी स्तन्य कहलाते है। दूध पिलाने का यह अवयव दुग्धग्रंथियो और स्तनकोश से बना होता है। वृद्धि प्राप्त होने पर चूचुक ( ढिपनी ) निकलते हैं जिनसे बच्चा दूध खीचता है। भीतरी रचना मे एक अंतरपट ( मांस की