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विश्वप्रपंच

पहला प्रकरण

१९ वी शताब्दी के अंत मे मानव-ज्ञान की जो अपूर्व वृद्धि हुई है वह ध्यान देने योग्य है। इसके द्वारा हमारी सारी आधुनिक सभ्यता का रंग ही पलट गया है। हम लोगो ने प्राकृतिक सृष्टि का बहुत कुछ वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर केवल सच्चे और निर्भात सिद्धांत ही नहीं स्थिर किए है बल्कि अपने ज्ञान का विलक्षण उपयोग कला-कौशल, व्यापार, व्यवसाय आदि मे करके दिखाया है। पर इस ज्ञान के द्वारा हम अपने आचार और व्यवहार मे बहुत कम क्या कुछ भी उन्नति नही कर सके है। इस प्रकार की परस्पर विरुद्ध गति के कारण हमारे जीवन मे बड़ी भारी अव्यवस्था दिखाई पडती है जो आगे चलकर समाज के लिये अनर्थकारिणी होगी। अत प्रत्येक शिक्षित और सभ्य मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मानव जीवन से इस विरोध को दूर करने का प्रयत्न करे। यह तभी होगा जब संसार का वास्तविक और सत्य ज्ञान होगा और उस ज्ञान के अनुसार मानव-जीवन के भिन्न भिन्न अगो की योजना होगी।

१९ वी शताब्दी के आरंभ मे विज्ञान की जो अपूर्ण दशा थी उसकी ओर ध्यान देते हुए यही कहना होगा कि गत