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द्वारा। प्रत्येक पैगंबरी मत के ईश्वर के साथ साथ एक एक पैगंबर लगा हुआ है जिसे मानना उस एक ईश्वर के मानने से कम आवश्यक नहीं है।

इस पैगंबरी एकेश्वरवाद के पहले संसार मे मतसंबंधी युद्ध नहीं होते थे। भारतीय आर्य, पारसी, खाल्दी, मिस्री, यूनानी और रोमन इत्यादि जो ज्ञानसमृद्ध और सभ्य बहुदेवपासक जातियाँ थी उनके बीच कभी इस बात को लेकर युद्ध नहीं हुआ कि हमारा देवता तुम्हारे देवता से बड़ा है, तुम हमारे देवता को मानो। योरप मे साहित्य, दर्शन, विज्ञान और शासनकला की जो इतनी उन्नति हुई वह बहुदेवोपासक प्राचीन यूनानियो और रोमनो के प्रसाद से, अनार्य ईसाई मत के प्रसाद से नही। ईसाई मत के द्वारा, सच पूछिए, तो ज्ञान की गति मे बाधा ही पड़ती रही। संकीर्ण नीव पर पैगंबरी मतो की स्थापना होने के कारण उनके अनुयायियो मे व्यापक उदारता का अभाव रहा। उनकी समझ मे उन्हे छोड़ और सारे संसार के लोग उनके खुदा के दुश्मन थे। अंगरेज़ कवि अंधे मिल्टन तक ने प्राचीन सभ्य जातियों के देवताओ को शैतान की फौज मे भरती कर के अपने कट्टरपन का---अपनी संकीर्ण मनोवृत्ति का---परिचय दिया है। उसने यह न सोचा कि ईसाई मत के प्रचार के बहुत पूर्व सभ्य मनुष्यजातियो में धर्म, शील और अचार के अत्यंत उच्च आदर्श प्रतिष्ठित थे।

भारतीय आर्यों के बीच उपनिषत्काल मे ब्रह्म की भावना पूर्णता को पहुँच गई थी इससे उसके स्थूल निरूपण से भी