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प्राणिविज्ञान मे घटकरूप में शरीराणुवाद की प्रतिष्ठा थी ही, अब वंशपरंपरा के नियमों का अध्ययन कर मेंडल आदि ने बताया है कि वृद्धिकारक घटको ( शुक्रकीटाणु, गर्भाड ) मे भी संख्या और खंडत्व प्रत्यक्ष है और संततिभेद भी गिने और पहले से बताए जा सकते है। जहाँ डारविन के अनुसार अखंड परंपरागत भेद द्वारा ही ढाँचे में फेरफार माना जाता था वहाँ उसके स्थान पर या कम से कम उसके साथ साथ अब आकस्मिक या आगंतुक रूपांतर द्वारा विशिष्ट, असबद्ध और परंपराखंडित परिवर्तन माना जाने लगा है। इतने पर भी यह निश्चय है कि अखंडत्व ही विकाश सिद्धान्त का मूल है। गतिशक्ति तक अण्वात्मक बताई जाने लगी है। प्रो० प्लांक का शक्तयणु (Quantum) वाद अन्यत चित्ताकर्षक ---कुछ लोगो की समझ मे अत्यंत प्रबल भी--है। ज्योति.प्रवाह के भी सखंड और अणुमय सिद्ध होने के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। ज्योति.प्रवाह के अणुमय होने की चर्चा अब उतनी धीमी नहीं है जितनी की कुछ पहले पड़ गई थी। इस बात मे यथार्थता चाहे जितनी हो पर ज्योति:प्रवाह संबंधी जो विवाद है वह है बड़े महत्व को, क्योकि वह ईथर और द्रव्य के बीच की सब से अधिक ज्ञात और परीक्षित श्रृंखला है। ज्योतिःप्रवाह यद्यपि वेगप्रेरित विद्युदणु से ही उत्तेजित होता है पर आगे चल कर वह आकाशतत्व ईथर मे ही विचरण करता है और एक विशिष्ट वस्तु की तरह सम तथा नियमित गति से गमन करता है। इससे ज्योतिःप्रवाह के द्वारा हम बहुतसी बाते जान सकते हैं।