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पूरा अन्यूटनिक सिद्धांत ही निकाला गया है जिसके आधार हाल मे जाने हुए वे परिवर्तन हैं जो प्रकाश के तुल्य वेग से गमन करते हुए पदार्थों मे पाए गए हैं। वास्तव में यह पाया गया है कि परिमाण और आकृति वेग की क्रियाएँ या गुण हैं। जैसे जैसे वेग बढ़ता है वैसे ही वैसे परिमाण बढ़ता है और आकृति मे फेरफार होता है, पर साधारण अवस्था में हद से ज्यादा सूक्ष्म रूप मे। भौतिक विज्ञान के अधिकांश विभागों मे सुगमता के स्थान में जटिलता बढ़ती जाती है। आज कल भौतिक विज्ञान मे जो मुख्य विवाद चल रहा है उसका झुकाव खंडत्व और अखंडत्व के विषय मे है।

"ऊपर से देखने में सृष्टि के बीच पहले हम खंडत्व पाते हैं अर्थात् हुम ऐसे पदार्थ देखते हैं जिन्हें अलग अलग गिन सकते हैं। फिर हम वायु तथा और और अतरवर्तियों का अनुभव करते हैं और अखंडत्व या प्रवाहित द्रव्य का समर्थन करते हैं। इसके अनंतर हम अणुओ को पता लगाते हैं और फिर खंडत्व हमारे सामने आता है। तब हम ईथर का पता लगाते है और फिर अखंडत्व पर विश्वास करते हैं। पर इसका अंत यही नहीं होने का। अंतिम परिणाम क्या निकलेगा, या कुछ निकलेगा भी, यह बताना कठिन है। आजकल की प्रवृत्ति तो प्रत्येक पदार्थ को सखंड या अणुमय बताने की है। विद्युत् या विद्युत्प्रवाह भी–---सुनकर आश्चर्य होगा---अणुमय प्रमाणित हुआ है और उसके अणु का नाम विद्युदणु रखा गया है। चुंबकशक्ति तक के अणुमय होने का सदेह किया गया है और उसकी व्यष्टि या अणु का नाम चुंबकाणु रख दिया गया है।