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व्यक्ति होती है। विषयी निरंतर विषय रूप होता रहता है और ऐसी सृष्टि करता है जिसमें विषय और विषयी का एक मे पर्यवसान होता है। द्वैत मे अद्वैत, भेद मे अभेद का यह क्रम ही आकर्षण और अपसारण का मूल है और इसकी उद्धरणी जगत् मे चरावर होती रहती है। शेलिंग का कहना है कि विषयी जो विषय हो जाता है वह 'भेद मे अभेद' भाव हो कर फिर पलट कर अपने मे मिलने के लिये ही। जगत् और ज्ञान दोनो का क्रम बुद्धिक्रम है। विषय और विषयी, ज्ञाता और ज्ञेय के भेद का परम चैतन्य या पूर्णबुद्धि मे जा कर अभेद हो जाता है। अभेदरुप इस ऐकांतिक पूर्ण चैतन्य सत्ता का बोध क्यो कर हो सकता है? शेलिंग का कथन हैं कि प्रज्ञा से।

शेलिग के इसी 'भेद में अभेद' के ऊपर हेगल ने अपना अद्भुत चमत्कारपूर्ण भवन खड़ा किया जिससे वाह्यार्थवादी इतना घबराते हैं। उसने शेलिंग के इस कथन को अयुक्त बताया कि पूर्ण चैतन्य सत्ता का बोध प्रज्ञा द्वारा हो सकता है। उसने कहा कि संवेदन या इंद्रियज ज्ञान से ऊपर जो बोध होगा वह अनुमान या तर्कपद्धति द्वारा ही होगा। इसके लिये उसने एक नया आंतर तर्क खड़ा किया जिसका आधार यह है कि दो जुदी वस्तुएँ यदि समान हो तो गुण की एकता से एक ही हो सकती हैं। इसी तर्कपद्धति द्वारा उसने दिखाया कि किस प्रकार अपरिच्छिम सत्ता परिच्छिन्न हो कर भी अपरिच्छिन्न बनी रहती है, किस प्रकार चित् की भाव जगत् हो जाता है और फिर आत्मा हो कर अपने में लौट आता है, सत् किस प्रकार असत् हो जाता है और फिर अपने में लौट