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चराधर धीमा होता जायगा। इससे पृथ्वी अपने वेग के बल से सूर्य से दूर जो मंडल बाँधकर भन्नाटे के साथ घूम रही है कभी न कभी वह मंडल टूट जायगा और वह सूर्य पर जा पड़ेगी। पर आजकल के गणितज्ञ ज्योतिषी इसकी उलटी कल्पना करने लगे हैं। वे कहते हैं कि जो स्थूल द्रव्य हम देखते हैं उससे कही अधिक घनत्व और शक्तिसंचय ईथर मे है। वह ठोस सीसे से भी न जाने कितने लाख गुना ठोस होगा। पृथ्वी आदि जो स्थूल लोकपिड हैं उन्हें ईथर के बीच बीच मे खाली या खोखले स्थान समाझए!

अस्तु, अब ईथर और शक्ति मे क्या संबंध है, यह देखना है। यह बड़ी ही गूढ़ समस्या है। ईथर के संबंध मे जो मोटी धारणा बँधती है वैज्ञानिक कहते है वह ठीक नही है। हम यह समझते हैं कि ईथर एक निष्क्रिय अखंड सूक्ष्म भूत का विस्तार है जिस पर या जिसके आश्रय से द्रव्य क्रिया ( आकर्षण, प्रकाशप्रवाह ) करता है। सर आलिवर लाज कहते हैं यह खयाल गलत है। ईथर गतिशक्ति का अनत भाण्डार है। परमाणुगत शक्ति के समान यह शक्ति भी पकड़ मे नही आती। यदि पकड़ में आ जाये तो इससे बात की बात मे प्रलय उपस्थित किया जा सकता है।

हैकल ने अपने ग्रंथ मे जगह जगह "प्रकृति के नियम" या "परम तत्व के नियम" की झड़ी बाँध दी है। यह वाक्य बहुत ही भ्रामक हो गया है। लोग इसका बहुत ही अतिव्याप्त अर्थ लेते हैं। 'दो और दो चार होते हैं' यह भी प्रकृति का नियम, 'गतिशक्ति का क्षय नहीं होता' यह भी प्रकृति का