हो सकता है। कर्म कीजिये परंतु . कर्म अथवा विचार का मन पर गहरा प्रभाव न पड़ने दीजिये। लहरों को उठने गिरने दीजिये; मन और शरीर से बड़े-बड़े काम कीजिये किंतु 'आत्मा पर उनकी छाया टिकने न दीजिये। यह कैसे संभव है? हम यह सरलता से देख सकते हैं कि किसी कर्म का, जिमसे हमें आसक्ति होती है, प्रभाव हमारे चित्त पर दीर्घकाल तक रहता है।
दिन में मैं सौ व्यक्तियों से मिलूं और उनमें से एक ऐसा भी हो जिसे मैं प्यार करता होऊँ। रात्रि में मैं उन सबका स्मरण करूँ तो उसीका चित्र सबके सामने आवेगा जिसे मैं प्यार करता था, यद्यपि जिसे कदाचित् मैंने एक क्षण के लिये ही देखा था। और सब लुप्त हो जाते हैं। उस व्यक्ति में मेरी आसक्ति के कारण उसके द्वारा औरों की अपेक्षा मेरे चित्त पर गहरा प्रभाव पड़ा। दैहिक क्रियाओं में समानता रही है ; प्रत्येक का प्रतिविम्ब आँख के तिल पर पड़ा और मानसिक केन्द्र से उसकी पहचान हुई, परंतु उनके प्रभाव में समानता नहीं। प्रत्युत उस व्यक्ति का, जिसकी शायद मैंने झलक भर देखी थी, मन पर गहरा प्रभाव पड़ा, इसलिये कि उसके विपरीत अन्य आकृतियों को मेरे मन में अनुरूप संस्कार न मिले। उनमें से अधिकांश कदाचित मेरे लिए नयो आकृतियाँ थीं; किंतु उसको आकृति ने, जिसे मैंने पल भर देखा, मेरे मन में अनुकूल संस्कार पा लिये। शायद अपने नमें मैंने वर्षों से उसका चित्र खींच रखा था, उसके बारे में