यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कर्मयोग
४३
तब संन्यासी ने कहा--"ऐ राजा, तुमने देखा कि अपनी- अपनी जगह पर सब बड़े हैं। यदि तुम संसार में रहते हो, इन पत्तियों की भाँति रहो, परस्वार्थ के लिये किसी भी समय अपना शरीर तक दे सको। यदि संसार से अलग रहना चाहते हो, तो उस संन्यासी की भाँति रहो जिसके लिये एक सुन्दर राजकुमारी और एक साम्राज्य भी तिनके के बराबर थे। यदि गृहस्थ हो, तो दूसरों के लिये जियो; यदि संन्यासी हो तो सौन्दर्य, शक्ति, सम्पत्ति की और आँख उठाकर भी न देखो। मानव-मात्र महान् है, परन्तु एक का धर्म दूसरे का धर्म नहीं।