दूसरा अध्याय
मनुष्य-मात्र महान् है
सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति में सत्त्व, रज और तम तीन शक्तियाँ हैं। संसार में जिस भाँति ये प्रकट होती हैं उसे हम आकर्षण, प्रत्याकर्षण और दोनों का समानभाव कह सकते हैं। सत्व दोनों का समान-भाव है, रज प्रत्याकर्षण तथा तम आकर्षण। तम को संज्ञा अंधकार अथवा क्रियाहीनता है; रज की क्रियाशीलता है, जबकि प्रत्येक परमाणु केंद्र से अलग हो दूर जाना चाहता है; सत्त्व दोनों का समान-भाव, दोनों को उचित अनुपात में रखता है।
प्रत्येक मनुष्य में भी ये तीन शक्तियाँ होती हैं; और हम देखते हैं कि हममें से प्रत्येक में तम का प्राबल्य है। हम लोग आलसी हो जाते हैं; जगह से हिल नहीं सकते, अकर्मण्य, जैसे आलस्य अथवा कुछ विचार हमें जकड़ लेते हों! किसी दूसरे समय हम लोग अत्यंत क्रियाशील हो जाते हैं और फिर कभी इन दोनों का अनुपात बराबर हो जाता है,--सत्व। किन्हीं मनुष्यों में इन शक्तियों में से किसी एक का साधारणतः प्राधान्य रहता है। कोई स्वभाव से ही सुस्त और काहिल होता है; कोई