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कर्मयोग
 

यदि वह इनसे महत्तर अभीप्स्य नहीं जानता। परंतु प्रत्येक मनुष्य को क्षुद्र इच्छाओं से उठकर उच्च इच्छाओं की ओर जाना होता है और जानना होता है कि ये इच्छाएँ क्या हैं। "काम करने का हमारा अधिकार है, उसके फल का नहीं।" फल, कर्मो के परिणाम की चिन्ता छोड़िये। फल का विचाराविचार कौन करे? जब आप किसी मनुष्य की सहायता करें तब इस बात का तनिक भी ध्यान न कीजिये कि आपके प्रति उसके हृदय में कैसे भाव हैं। फलों की नाप-जोखकर उन्हें पहचानने का विचार न कीजिये। जब आप कोई बड़ा काम अच्छा काम करें तब उसका परिणाम क्या होगा, इसका तनिक भी आगा-पीछा न कीजिये।

कर्म के इस आदर्श के संबन्ध में विचार के लिये एक कठिन प्रश्न उठता है। घोर अध्यवसाय आवश्यक है! हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिये। एक क्षण भी बिना कर्म किये हम रह नहीं सकते। तब आदर्श शांति के के विपय में क्या कहा जाय? एक ओर आजीवन घोर परिश्रम का चित्र है; अपने सामाजिक जीवन-चक्र में हम द्रुत गति से घूमते हैं। और दूसरी ओर शांत, निर्लिप्त सन्यास का चित्र है; चारों ओर शांति, कोई दिखावे की वस्तु नहीं, कोई हलचल-कोलाहल नहीं, केवल प्रकृति, पशु, फूल और पर्वत! इनमें से कोई भी पूर्ण चित्र नहीं। असमर्थ संन्यासी संसार के अजस्र घूर्ण्यमान मान बज्र-चक्र के क्षुद्र संघर्ष से भी सहस्रधः छिन्न-विच्छिन्न हो जायगा; समुद्र-तल में रहनेवाली मछली सतह पर आते ही जैसे टुकड़े-टुकड़े हो जाती है; नीचे जल का