परन्तु यदि मनुष्य बिना किसी स्वार्थ-भावना के कार्य करता तो उसका क्या होता है? क्या उसे कोई लाभ नहीं होता? हाँ, होता है; उसे सबसे बड़ा लाभ होता है। स्वार्थ-हीनता से अधिक लाभ होता है केवल मनुष्य में उसका आचरण करने का धैर्य नहीं। सांसारिक लाभ भी उससे अधिक होता है। प्रेम, सत्य, त्याग आलङ्कारिक संकेत-मात्र नहीं। वे हमारा सर्वोच आदर्श हैं, शक्ति का महत्तम विकास उन्हीं के द्वारा सम्भव है। सबसे पहले एक मनुष्य जो पाँच दिन अथवा पाँच मिनट के लिये भी बिना किसी स्वार्थ-भावना के, स्वर्ग-नरक भूत-भावी आदि का विचार किये, काम कर सकता है, अपने में एक महान् अध्यात्म वीर होने की सामर्थ्य रखता है। ऐसा करना कठिन है पर अपने गूढ़-से-गूढ़ अन्तहृर्दय में हम उसका मूल्य तथा उसका कितना सुन्दर परिणाम होगा, भली भाँति जानते हैं। यह महान् निरोध शक्ति का सबसे बड़ा परिचय है। स्वेच्छारोध सभी वाह्य कर्मों की अपेक्षा शक्ति का महत्तर प्रमाण है। चार घोड़ों से जुती गाड़ी पहाड़ी के ढाल पर विना वाधा के दौड़ती चली आ सकती है। अथवा सारथी घोड़ों को रोक ले। शक्ति का परिचय किससे अधिक मिलता है, उन्हें रोकने से या चले जाने देने से? एक गेंद हवा में उड़ती हुई दूर जाकर गिरती है; दूसरी की गति दीवाल से टकराने से रुक जाती है, और विद्युत् के समान उष्णता का जन्म होता है। इसलिये वाह्य कर्म स्वार्थ-भावनाओं का अनुगामी होता है और आगे-पीछे उसका लोप हो जाता है।
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कर्मयोग