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कर्मयोग
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महान आत्माओं के विपय में संसार को कुछ भी ज्ञात नहीं। इस प्रकार के सैकड़ों अज्ञात महात्मा प्रत्येक देश में चुपचाप काम कर चले गये हैं। उनका जीवन शांत होता है, मरण शांत होता है; समय पाकर उनके विचार बुद्धों और ईसाओं में एकत्र हो फूटते हैं और हम तब इन पुरुषों को जान पाते हैं। उच्चतम श्रेणी के पुरुप अपने ज्ञान से नाम और कीर्ति नहीं अर्जित करना चाहते। वे अपने विचार संसार के लिये छोड़ जाते हैं। अपने लिये वे कुछ नहीं चाहते, अपने नाम पर कोई संप्रदाय, कोई धर्म नहीं चलाते। उनका स्वभाव ऐसी बातों को सहन नहीं कर सकता। वे पूर्ण सात्त्विक हैं जो किसी प्रकार की क्रियाशीलता नहीं दिखा सकते, केवल प्रेम में द्रवीभूत होते हैं। मैंने एक ऐसे योगी को देखा है जो भारतवर्प की एक कंदरा में रहते हैं; वह उन अत्यंत विचित्र पुरुषों में से हैं जिन्हें मैंने कभी है। उन्हें अपना व्यक्तित्व इतना भूल गया है कि उनके भीतर का व्यक्ति लुप्त होगया है, अलौकिक की सर्वज्ञता-मात्र पीछे रह गई है। यदि पशु उनकी एक वाँइ काटता है तो वे उसके सामने दूसरी भी बढ़ा देते हैं और कहते हैं, ईश्वर की यही इच्छा है। उनके साथ जो कुछ भी होता है, वह ईश की इच्छा से होता है। वह मनुष्यों में नहीं निकलते, फिर भी वह प्रेम और मधुर सदुविचारों की खान हैं।

इनके पश्चात् वे राजसिक पुरुष आते हैं जो पूर्ण पुरुषों के विचारों को लेकर संसार में उनका प्रचार करते हैं। उच्चतम श्रेणी के पुरुप उन्नत सत्य के विचारों को चुपचाप एकत्र किया करते