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सातवाँ अध्याय

मोक्ष

हम यह पहले कह चुके हैं कि कर्म का अर्थ किये हुये काम के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक ढंग से उसके मूल कारण से भी होता है। प्रत्येक क्रिया, प्रत्येक विचार जिसका एक फल होता है, कर्म है। इस प्रकार कर्म-सिद्धांत का अर्थ है, कार्य-कारण का अन्योन्याश्रित संबन्ध । जहाँ कारण होगा, वहाँ उसके परिणाम-स्वरूप कार्य अवश्य होगा। यह नियम तोड़ा नहीं जा सकता और यह कर्म-सिद्धांत हमारे शास्त्रों के अनुसार विश्व में चरितार्थ होता है। हम जो कुछ भी देखते-सुनते और करते हैं, संसार में जो भी काम होते हैं, वे एक ओर तो पूर्व कर्मों के परिणाम है, तथा दूसरी और अन्य कर्मों के कारण हो जाते हैं। यहाँ यह जान लेना अति आवश्यक है कि धर्म अथवा सिद्धांत का ठीक अर्थ क्या है। मनोवैज्ञानिक रूप से हम देख सकते हैं कि धर्म या नियम का अर्थ किसी बात की पौनःपुनरावृत्ति से है। जब हम किसी घटना को एक बार होते देख लेते हैं अथवा उसी के साथ अन्य घटना भी घटती है तब हम इस क्रम की आवृत्ति की अथवा दोनों के एकसाथ होने