पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/९९

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है, वह हम में है। अमरत्व और आनंद को कहीं ढूँढ़ना नहीं है। वे हममें विद्यमान हैं और सदा से हमारे रहे हैं।

यदि आप यह कहने का साहस करें कि हम मुक्त हैं, तो आप अभी मुक्त हैं। यदि आप यह कहें कि हम बद्ध हैं, तो आप बद्ध रहेंगे। अद्वैत यही डंके की चोट पुकार रहा है। मैंने आपको द्वैतवादियों के विचार भी बतला दिए हैं। आप जिन्हें चाहिए, मानिए।

वेदांत के सर्वोत्कृष्ट वाक्य का समझना नितांत कठिन है। लोग इस पर लड़ते झगड़ते रहते हैं। कठिनता तो यह है कि जब उन्हें किसी विचार का बोध हो जाता है, तब वे दूसरे विचारों का निषेध और खंडन करते हैं। आपको जो विचार अच्छे लगे, उन्हें ले लीजिए और दूसरों को जो भावे सो लेने दीजिए। यदि आप इस छोटी एकदेशी आत्मा ही को मानना चाहते हैं तो उसीको मानते रहिए; अपनी सारी आकांक्षाएँ बनाए रहिए और उन्हीं पर संतोष रखिए। यदि आप जीवात्मा का पूरा अनुभव कर चुके हैं, तो जहाँ तक बने उसे मानते जाइए। आपको ऐसा करने का अधिकार है। आप अपने भाग्य के विधाता हैं। अपने कोई अपने विचार छोड़ने के लिये बाध्य नहीं करता। आप जब तक बने, जीवात्मा बने रहे; कोई आपको रोकता नहीं। आप मनुष्य ही बने रहें। यदि आप देवता बनना चाहें तो देवता हो जायँगे, यही नियम है। पर कुछ और लोग भी हो सकते हैं जो देवता भी होना नहीं