निश्चयवादी (Positivist) और संशयवादी (Agnostics) हैं। एक पक्ष का विश्वास है कि एक निर्विकार पदार्थ है और हमें उसी निर्विकार की एक झलक मात्र दिखाई पड़ती है। इसी पक्ष के अंतिम आचार्य्य हर्बर्ट स्पेंसर हैं। जिन लोगों को उस विवाद में आनंद आता था जो अभी थोड़े दिन हुए हर्बर्ट स्पेसर और फ्रेडरिक हेरिसन में हुआ था, उन्हें मालूम होगा कि उसमें वही पुरानी कठिनाई आकर पड़ गई थी। एक पक्ष तो यह कहता था कि कोई निर्विकार पदार्थ है; और दूसरा कहता था कि ऐसे पदार्थ के मानने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। एक पक्ष यह कहता था कि जब तक हम किसी निर्विकार पदार्थ को मान न लें, हमें विकार का बोध ही नहीं हो सकता। दूसरा पक्ष कहता था कि ऐसा मानना निष्प्रयोजन है। हमें तो केवल उसी का बोध हो रहा है जो विकार को प्राप्त हो जाता है। हम निर्विकार को न तो जान सकते हैं, न अनुभव कर सकते हैं और न साक्षात् ही कर सकते हैं।
भारतवर्ष में इस बड़ी शंका का समाधान प्राचीन काल में नहीं हो सका था। कारण यह था कि जैसा कि हम दिखला चुके हैं, गुण से परे ऐसे द्रव्यों की कल्पना जिनमें कोई गुण न हो, प्रमाणित नहीं हो सकती। न तो अपने बोध वा स्मरण से कि मैं वही हूँ जो कल था; और अतः मैं कोई सतत वस्तु रहा हूँ, मुक्ति की ही सिद्धि हो सकती है। दूसरा
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