है और विचारने से आ सकती है। लोगों को विचार करने दीजिए। मिट्टी का डला ही विचार नहीं करता। वह सदा डले का डला बना रहता है। मनुष्य का महत्व तो यही है कि वह एक चिंतनशील सत्व है। मनुष्य का स्वभाव विचारते का है और इसके कारण उसमें और पशु में अंतर है। मैं तर्क पर विश्वास करता हूँ और तर्क का अनुयायी हूँ। मैं शब्द-प्रमाणता की बुराइयों को बहुत देख चुका हूँ। मैं तो ऐसे देश में उत्पन्न हुआ हूँ जहाँ शब्द-प्रमाणता पराकाष्ठा को पहुँच चुकी है।
हिंदुओं का विश्वास है कि सृष्टि वेदों से हुई है। यह आप जानते कैसे हैं कि गाय है? इसी कारण कि वेदों में गाय शब्द है। यह ज्ञान आपको कैसे हुआ कि आगे मनुष्य खड़ा है? इसलिये कि वेद में मनुष्य शब्द है। यदि ऐसा न होता तो संसार में मनुष्य होते ही नहीं। यही उनका कथन है। शासन और वैरनिर्यातन! और इसका अध्ययन वैसे नहीं हुआ है जैसे कि मैंने अध्ययन किया है, अपितु किसी बलवान् आत्मा ने उसे लेकर उसके चारों ओर तर्क का अद्भुत जाल बना दिया है। इस पर उन लोगों ने तर्क किया और यह वहाँ एक पूरा दर्शन बन गया है और सहस्रों बुद्धिमान् मनुष्य सहस्रों वर्षों से इस सिद्धांत के अध्ययन में लगे हुए हैं। शब्द- प्रमाणता का यह प्रभाव है और इससे बड़ी बड़ी हानियाँ हैं। इससे मनुष्य की बाद रुक जाती है। हमें यह न भूलना चाहिए कि हमें बढ़ने की आवश्यकता है। यहाँ तक कि सारे