त्राहि मां त्राहि मां चिल्लाते हैं पर कहीं से हमें कुछ भी सहारा
नहीं मिलता। हम कल्पित सत्वों के सामने रोते और गिड़-
गिड़ाते हैं, पर वहाँ सुननेवाला कौन है। फिर भी हमारी यह
आशा नहीं छूटती कि हमें सहायता मिलेगी; और इस प्रकार
रोते रोते, चिल्लाते चिल्लाते और आशा करते करते एक जन्म
बीतता है, दूसरा भी बीतता है; पर वह बात ज्यों की त्यों
बनी रहती है।
मुक्त बनो; किसी से कुछ आशान करो। मुझे यह विश्वास है कि यदि आप अपने जीवन पर ध्यान देंगे तो आपको जान पड़ेगा कि आप सदा दूसरों से सहायता माँगते रहे हैं, पर वह कभी नहीं मिली है। जो सहायता मिली है, वह आपके भीतर से मिली है। आपको अपने कर्म का ही फल मिला; पर फिर भी आप दूसरों से सहायता पाने की आशा करते रहे हैं। बड़े आदमियों का दीवानखाना सदा लोगों से भरा रहता है। पर यदि आप ध्यान करके देखें तो सदा वही लोग नहीं मिलेंगे। आनेवाले सदा यह आशा करते रहते हैं कि उन्हें उनसे कुछ मिलेगा; पर वे कभी नहीं पाते हैं। इसी प्रकार हमारा जीवन आशा ही आशा में बीत जाता है; पर आशा पूरी नहीं होती। वेदांत कहता है कि आशा छोड़ो। आप आशा क्यों करते हैं? आपके पास सब कुछ है। यही नहीं, आप ही तो सब कुछ हैं। आप आशा किस बात की करते हैं? यदि कोई राजा पागल हो जाय और अपने राज्य भर में राजा को ढूँढ़ता