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बुद्धि से ऐसा हो ही नहीं सकता है। भिन्न भिन्न प्रकार से एक ही बात कहना, एक ही वाक्य के अनेक अर्थ करना, यह सब विद्वानों के विनोद की बातें है। आत्मा की मुक्ति से इनका कोई संबंध नहीं है।

आप लोगों में से जिन लोगों ने टामस ए केम्पिस(Thomas a Kempis) को पढ़ा है, वे जानते हैं कि वह कैसे प्रत्येक पृष्ठ पर इसी पर बल देता है; और संसार के सभी महात्मा इसी पर बल देते रहे हैं। बुद्धि की तो आवश्यकता अवश्य है; उसके बिना तो हम अज्ञान-गर्त में गिरते हैं और नाना भाँति की भूलें करते हैं। बुद्धि इन सबसे हमें बचाती है। पर इससे अधिक उससे आशा मत करो। वह अक्रिय है और दूसरे के सहारे सहायक होती है। सच्ची सहायता बोध से मिलती है जो प्रेम है। क्या आपको दूसरे के साथ सहानुभूति है? यदि है तो आप एकता की ओर बढ़ रहे हैं। यदि नहीं है तो आप संसार में कितने ही बुद्धिमान् क्यों न हो, पर आप कुछ नहीं हैं। आपमें केवल सूखी बुद्धि भरी है और आप ऐसे ही सदा कोरे रह जायँगे। और यदि आपमें दूसरों के साथ सहानुभूति है, आपके लिये काला अक्षर भैंस बराबर क्यों न हो, आपको बोलना तक न आता हो पर आप ठीक मार्ग पर हैं। भगवान् आप ही के होंगे।

क्या आपको इतिहास से इसका ज्ञान नहीं है कि धर्मा- चार्य्यौ की शक्ति का आधार क्या था? क्या उसका आधार उनकी बुद्धि थी? क्या उन लोगों ने दर्शन की बड़ी बड़ी पुस्तकें