बिना उपालंभ के सहना। कोई क्षति हो तो उसकी चिंता मत करो। सिंह सामने आ जाय तो डटे रहो। भागता कौन है? ऐसे लोग भी हैं जो तितिक्षा करते हैं और सफल होते हैं। संसार में ऐसे लोग भी हैं जो भारत के ग्रीष्म काल में मध्याह्न समय गंगा के तट पर सोते हैं और जाड़े में दिन दिन भर गंगाजी में पड़े रहते हैं। उन्हें चिंता ही नहीं है। लोग हिमालय के हिम में बैठे रहते हैं और उन्हें वस्त्र की चिंता नहीं। गर्मी क्या है? शीत किसे कहते हैं? आवे और जाय, मुझे इससे क्या काम; मैं शरीर नहीं हूँ। पश्चिम के देशों में इस पर विश्वास करना भी कठिन है, पर यह प्रख्यात है कि वे ऐसा करते हैं। जैसे यहाँ के लोल संग्राम में तोप के मुँह पर कूदने में शूर हैं, वैसे ही हमारे देश के लोग अपने दर्शनों को समझने और उनके अनुसार, अभ्यास करने में शूर है। वे इस पर अपने प्राण देते हैं कि ‘चिदानंद रूपो शिवोऽहम् शिवोऽहम्’। जैसे पश्चिम का आदर्श यह है कि भोग-विलास को नित्य के व्यावहारिक कामों में न छोड़ना, वैसे ही हमारा आदर्श है कि उस प्रकार की आध्या- त्मिकता को बनाए रह कर यह सिद्ध कर देना है कि धर्म केवल शब्दाडंबर नहीं है; अर्थात् उसके एक एक अंश का इस जीवन में पालन किया जा सकता है। यही तितिक्षा है कि सब सहना। उपालंभ किस लिये देना? मैंने ऐसा कहते हुए मनुष्यों को देखा है कि मैं आत्मा हूँ, संसार से मुझसे क्या काम? धर्म क्या है? यह प्रार्थना करना कि मुझे यह दीजिए, वह
पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३१२
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ २९९ ]