पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/३०२

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न कोई किसी से कहता है, न कोई, किसी की सुनता है, वहीं बड़ाई है, वहीं महत् है, वहीं ब्रह्म है। वह होकर आप सदा वही रहेंगे। फिर संसार का क्या होगा? संसार की हमसे भलाई क्या होगी? ऐसे प्रश्न फिर उठेंगे ही नहीं। बच्चा कहता है कि मेरी जलेबी किस काम आवेगी? लड़का कहता है, मैं बड़ा हो जाऊँगा तो मेरे खिलौने क्या होंगे? मैं तो बड़ा न होऊँगा। लड़की कहती है, मैं बड़ी होऊँगी तो मेरी गुड़िया क्या होगी? ऐसे ही संसार के विषय के प्रश्न भी हैं। न यह कभी था, न है और न होगा। यदि हमें आत्मा के स्वरूप का बोध हो जाय, यदि हम यह जान जायँ कि सचमुच संसार कुछ नहीं है, तो यह संसार अपनी बुराई भलाई सुख दुःख के लिये हमे विचलित नहीं कर सकेगा। यदि वह है ही नहीं तो फिर हमें किसके लिये और किस बात की चिंता है? यही ज्ञानयोग का उपदेश है। अतः मुक्त होने का साहस करो। जहाँ तुम्हारी बुद्धि ले जा सके, जाओ और इसी जन्म में उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करो। ज्ञान का प्राप्त होना बहुत कठिन है। यह बड़े वीर, बड़े साहसी का काम है कि सारे खिलौनों को चूर चूर करके फेंक दे और केवल मन से नहीं, अपितु कर्म से भी कर दिखावे। शरीर मैं नहीं हूँ, यह जाय। इसी से तो सारे तमाशे हैं। एक मनुष्य आकर पूछेगा कि अच्छा मैं शरीर न सही, पर मेरी शिरोवेदना अच्छी हो जाय। पर यह तो बताइए कि शिरोवेदना है कहाँ? शरीर ही में न है? सहस्त्रों शिरोवेदनाएँ, सहस्त्रों शरीर

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