मार्ग यह है कि वह समाधि के सदृश है। यही सांख्य दर्शन का मत है।
दूसरी बात जो सांख्य कहता है, वह यह है कि प्रकृति की सारी अभिव्यक्ति आत्मा के लिये है, सारी सृष्टि किसी तीसरे के लिये है। यह सृष्टि जिसे आप प्रकृति कहते हैं, यह सारा परिवर्तन नित्य आत्मा के लिये हो रहा है―उसके भोग के लिये और उसी के मोक्ष के लिये कि वह छोटे से लेकर बड़े तक का अनुभव प्राप्त कर सके। जब उसे अनुभव हो जाता है, तब उसे जान पड़ता है कि वह प्रकृति में नहीं था; वह उससे नितांत पृथक् है, वह अविनाशी है, उसका आवागमन नहीं है। स्वर्ग में जाना और वहाँ से आकर जन्म लेना प्रकृति का धर्म है, न कि आत्मा का। इस प्रकार आत्मा मुक्त हो जाता है। सारी प्रकृति आत्मा के भोग और अनुभव प्राप्त करने के लिये काम कर रही है। आत्मा अवधि प्राप्त करने के लिये यह अनुभव कर रहा है, और वह अवधि मोक्ष है। पर सांख्य दर्शन के मत से अनेक आत्माएँ हैं। आत्मा की संख्या अनंत है। दूसरा सिद्धांत जो कपिल का है, वह यह है कि ईश्वर जगत् का कर्ता नहीं है। प्रकृति अकेली सारा काम कर सकती है। सांख्य कहता है कि ईश्वर की आवश्यकता नहीं है।
वेदांत कहता है कि आत्मा सत्, चित् और आनंद है। पर यह आत्मा के गुण नहीं हैं; वे एक हैं तीन नहीं, आत्मा का स्वरूप हैं। सांख्य की इस बात को वेदांत स्वीकार करता है कि