पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२७

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किसी पक्षपात का स्थान नहीं है। ईश्वर की कृपा है कि मनुष्य इन पक्षपातों के प्रभाव, निर्बलता और नीचता के घातक भावों से आक्रांत नहीं है। पर मनुष्य को इन सबमें होकर जाना है। उन लोगों के लिये जो आगे होनेवाले हैं, मार्ग को कठिन और कंटकपूर्ण मत बनाओ।

ये बातें बतलाने में कभी कभी भयानक जान पड़ती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ जो इन विचारों को सुनकर घबरा जाते हैं। पर उन लोगों के लिये जो कर्मण्य बनना चाहते हैं, इसका जानना मुख्य है। कभी आप अपने से वा दूसरे से यह मत कहिए कि तुम निर्बल हो। हो सके तो भलाई कीजिए, पर संसार को हानि मत पहुँचाइए। आप इसे अपने मन में समझते हैं कि आपके यह संकुचित विचार और किसी कल्पित व्यक्ति के सामने सिर झुकाना, प्रार्थना करना और गिड़गिड़ाना पक्षपात की बातें हैं। मुझे एक भी अवस्था तो बतलाइए जहाँ इन प्रार्थनाओं का उत्तर मिला हो। जो कुछ उत्तर मिला, वह आप ही के हृदय से मिला। आप जानते हैं कि भूत कहीं नहीं है। पर ज्यों ही आप अँधेरे में जाते हैं, आप पर कँपकँपी छा जाती है। इसका कारण यही है कि बचपन ही से यह सब विचार हमारे मस्तिष्क में ठूसे गए हैं। पर कृपा करके समाज के भय से या इस भय से कि लोग ऐसा मानते हैं या इसलिये कि लोग आप से घृणा करेंगे, या आपके पक्षपात, जिनके साथ आपको राग है, जाते रहेंगे, और लोगों को तो इन बातों की शिक्षा मत