पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२५२

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नहीं। यदि सब गोलकों के लिये एक ही इंद्रिय होती तो मन एक समय में देख भी सकता और सुन भी सकता। एक समय में वह साथ ही देख, सुन और सूँँघ सकता और उसको सब कुछ एक साथ करना असंभव न होता। अतः यह आव- श्यक है कि प्रत्येक गोलक की इंद्रिय अलग अलग हो। आधु- निक मनोविज्ञान ने भी इसे स्वीकार किया है। यह संभव है कि कोई साथ ही देख और सुन दोनों सके, पर ऐसी दशा में मन दोनों इंद्रियों से कुछ कुछ युक्त रहता है।

यह इंद्रियाँ बनी किससे हैं? हम देखते हैं कि आँख, नाक, कान स्थूल द्रव्यों से बने हैं। इंद्रियाँ भी भौतिक ही हैं। जैसे शरीर स्थूल द्रव्य का है और प्राण को भिन्न भिन्न स्थूल शक्तियों में परिणत करता है, वैसे ही इंद्रियाँ भी सूक्ष्म भूतों, आकाश, वायु, तेज आदि से बनी हैं और प्राण को प्रत्यक्ष की सूक्ष्म शक्तियों के रूप में परिणत करती हैं। इंद्रियाँ, प्राण और मन-बुद्धि मिलकर सूक्ष्म शरीर कहलाते हैं, जिसे लिंग शरीर भी कहते हैं। लिंग शरीर के भी रूप होते हैं, क्योंकि सभी भौतिक पदार्थ रूपवाले हैं।

मन को ही जब वह वृत्ति-युक्त होता है, चित्त कहते हैं। यदि आप एक तालाब में कंकड़ी फेंकें तो पहले कंप उठेगा, फिर अवरोध होगा। पहले पानी में कंप उठेगा, फिर वह कंकड़ी में ठोकर खायगा। इसी प्रकार जब कोई संस्कार चित्त पर आता है, तब उसमें कुछ कंप होता है। इसीका नाम मन है।