अपने भीतर अध्यात्म का दीया जलाओ, फिर पाप और अपवित्रता का अंधकार भाग जायगा। अपनी उच्च आत्मा का ध्यान करो, नीच आत्मा का नहीं।
वेदांत दर्शन के अनुसार मनुष्य में तीन पदार्थ हैं। बाहरी पदार्थ शरीर है जो मनुष्य का स्थूल शरीर कहलाता है और जिसमें आँख, नाक, कान आदि इंद्रियाँ हैं। आँख इंद्रिय नहीं है; वह केवल गोलक है। उस गोलक के परे इंद्रिय है। इसी प्रकार कान श्रोत्रंद्रिय नहीं हैं; वे गोलक मात्र हैं। उनके परे इंद्रिय है जिसे आधुनिक शरीर-विज्ञान में केंद्र कहते हैं। यदि आँख का केंद्र नष्ट हो जाय तो आँख देख नहीं सकती। यही दशा हमारी सारी इंद्रियों की है। फिर इंद्रियों को भी किसी पदार्थ का स्वयं बोध नहीं हो सकता, जब तक उनके साथ औरों का मेल वा संयोग न हो। यह मन है। कितनी ही बार आपके देखने में यह आया होगा कि आप किसी और विचार में लगे थे। घड़ी बजी और आपने उसे सुना नहीं। यह क्यों? कान था ही, उसमें कंप गए और वे मस्तिष्क तक पहुँचे; पर आपने फिर भी नहीं सुना। कारण यह था कि मन इंद्रियों से युक्त नहीं था। बाह्य पदार्थों के संस्कार को इंद्रियाँ ग्रहण करती हैं और जब मन उनसे संयुक्त रहता है, तब वह संस्कारों को